कैदी और कोकिला कविता व्याख्या | Kaidi Aur Kokila Vyakhya

Kaidi Aur Kokila Vyakhya

कैदी और कोकिला कविता का सार

कैदी और कोकिला श्री माखनलाल चतुर्वेदी की सुप्रसिद्ध कविता है। इसमें कवि ने अंग्रेजी शासकों द्वारा भारतीय पर किए गए जुल्मों का सजीव चित्रण किया है। प्रस्तुत कविता भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के साथ अंग्रेज अधिकारियों द्वारा जेल में किए गए दुर्व्यवहारों एवं यातनाओं का मार्मिक साक्ष्य प्रस्तुत करती है। प्रस्तुत कविता के माध्यम से एक और भारतीय स्वतंत्र सेनानियों के द्वारा किए गए संघर्षों का वर्णन है तो दूसरी ओर अंग्रेज सरकार की शोषणपूर्ण नीतियों को उजागर किया गया है।

कवि स्वयं महान स्वतंत्रता सेनानी है। वह स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल में बंद है। वह वहाँ के एकाकी एवं यातनामय जीवन से उदास एवं निराश है। कवि रात को कोयल की ध्वनि सुनकर जाग उठता है। वह कोयल को अपने मन का दुःख, असंतोष और आक्रोश सुनाता है। वह कोयल से पूछता है कि तुम रात्रि के समय किसका और क्या संदेश लाती हो। मैं यहाँ जेल की ऊँची और काली दीवारों में डाकुओं, चोरों और लुटेरों के बीच रहता हूँ। यहाँ कैदियों को भरपेट भोजन भी नहीं दिया जाता।

यहाँ अंग्रेजों का कड़ा पहरा है। अंग्रेज शासन भी गहन अंधकार की भांति काला लगता है। तुम बताओ कि रात के समय पीड़ामय स्वर में क्यों बोल उठी हो ? क्या तुझे कही जंगल की भयंकर आग दिखाई दी जिसे देखकर तुम कूक उठी हो ? क्या तुम नहीं देख सकती कि यहाँ कैदियों को जंजीरों से बाँधा हुआ है। मैं दिन भर कुएँ से पानी खींचता रहता हूँ किंतु फिर भी दिन में करुणा के भाव चेहरे पर नहीं आने देता। रात को ही करुणा गजब दाती है।

तुम बताओ कि तुम रात के अंधकार को अपनी ध्वनि से बंधकर मधुर विद्रोह के बीज क्यों बोती हो? इस समय यहाँ हर वस्तु काली है-तू काली, रात काली, अंग्रेज शासन की करनी काली, यह काली कोठरी, टोपी, कंबल, जंजीर आदि सब काली हैं तू काले संकट-सागर पर अपने मस्ती भरे गीतों को क्यों तैरानी हो।

तुझे तो हरी-भरी डाली मिली है और मुझे काली कोठरी तू आकाश में स्वतंत्रतापूर्वक घूमती है और मैं दस फुट की काल कोठरी में बंद हूँ। मेरी और तेरी विषम स्थिति में बहुत अंतर है। अतः कवि को लगता है कि कोयल भी पूरे देश को कारागार के रूप में देखने लगी है। इसीलिए वह आधी रात को कूक उठी है।

कैदी और कोकिला कविता व्याख्या

क्या गाती हो ?
क्यों रह-रह जाती हो?
कोकिल बोलो तो!
क्या लाती हो?
संदेशा किसका है?
कोकिल बोलो तो!
ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट भर खाना,
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली?

प्रसंग – प्रस्तुत दोहें कक्षा नोवी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग-1 में संकलित कविता कैदी और कोकिला से ली गयी है। इसके कवि श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी हैं। इस कविता में उन्होंने अंग्रेजी शासन के दौरान कैदियों पर हो रहे अत्याचारों का वर्णन किया हैं।

व्याख्या – कवि कोयल की ध्वनि सुनकर उससे पूछता है कि इस समय तुम रह-रहकर क्या गाती हो ? अपनी इस ध्वनि के माध्यम से तुम किसके लिए और क्या संदेश लाती हो मुझे इसके विषय में बताओ। कवि अपने विषय में उसे बताता है कि मैं यहाँ कारागार की ऊँची-ऊँची काली दीवारों के घेरे में डाकुओं, चोरों तथा रास्ते में दूसरों को लूटने वाले बटमारों के बीच बंद हूँ। दूसरी ओर, अंग्रेज सरकार जीने के लिए भर पेट खाना भी नहीं देती।

यहाँ ऐसी दशा बना दी गई है कि न हम मर सकते हैं और न ही भली-भाँति जी सकते हैं, बस तड़पते रहते हैं। यहाँ हमारे जीवन पर दिन-रात कठोर पहरा लगाया गया है। अंग्रेजी शासन का प्रभाव गहरे अंधकार के प्रभाव के समान है। कहने का भाव है कि जिस प्रकार अंधकार में कुछ नहीं सूझता; उसी प्रकार अंग्रेजी शासन में किसी के साथ सही न्याय नहीं होता।

अब रात काफी बीत चुकी है। चंद्रमा भी मानो निराश होकर चला गया है और उसके जाने के पश्चात रात पूर्णतः अंधकारमयी हो गई है। इस कालिमामयी अर्थात् गहरे काले रंग वाली कोयल तू इस अंधेरी रात में क्यों जाग गई। तुझे क्या गम या चिंता है।

भावार्थ – इन काव्य पंक्तियों में जहाँ एक ओर कवि के मन की निराशा का वर्णन है तो दूसरी ओर अंग्रेज शासन के अत्याचारों को उजागर किया गया है।

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क्यों हूक पड़ी?
वेदना बोझ वाली सी;
कोकिल बोलो तो!
क्या लूटा ?
मृदुल वैभव की
रखवाली-सी,
कोकिल बोलो तो!
क्या हुई बावली?
अर्द्धरात्रि को चीखी,
कोकिल बोलो तो!
किस दावानल की
ज्वालाएँ हैं दीखीं?
कोकिल बोलो तो!

व्याख्या – कविवर माखनलाल चतुर्वेदी अर्द्धरात्रि के समय कोयल की पीड़ा भरी आवाज सुनकर उससे पूछते हैं, हे कोयला तू इस प्रकार पीड़ा के बोझ से दबी हुई-सी आवाज में क्यों बोल उठी है ? बताओ तो सही तूने क्या किसी को लूटते हुए देखा है।

तू सदा मधुर ध्वनि में बोलने के कारण मधुरता के ऐश्वर्य की रक्षक-सी लगती थी, किंतु आज ऐसी वेदनायुक्त आवाज में क्यों बोल रही हो ? हे कोयल! क्या तुम पगला गई हो जो आधी रात के समय इस प्रकार कूकने लगी हो। क्या तुझे कहीं जंगल में लगी आग की लपटें दिखाई दी हैं जिन्हें देखकर तुम इस प्रकार कूक रही हो।

क्या?-देख न सकती जंजीरों का गहना ?
हथकड़ियाँ क्यों? यह ब्रिटिश राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ? – जीवन की तान,
गिट्टी पर अँगुलियों ने लिखे गान !
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली,
इसलिए रात में गज़ब ढा रही आली ?

व्याख्या – कवि ने कोयल से पूछा है कि क्या वह देख नहीं सकती कि अंग्रेज सरकार ने उन्हें जंजीरों के गहने पहनाए हुए हैं। ये हथकड़ियाँ जो हमने पहनी हुई हैं यहीं तो ब्रिटिश राज्य के गहने हैं जो वह भारतीयों को पहनाता है। कहने का भाव है ब्रिटिश शासक भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के पैरों में बेड़ियाँ और हाथों में हथकड़ियाँ डाल देते थे। कवि पुनः कहता है कि कैदियों से कोल्हू चलवाया जाता था।

उससे जो चर्रक चूँ की ध्वनि निकलती है, वह मानो हमारे जीवन की तान हो यहाँ कारागार में रहते हुए स्वतंत्रता सेनानी भी मिट्टी पर अपनी अंगुलियों से ही देश-भक्ति के गीत लिखते हैं। मैं अपने पेट पर जुआ लगाकर मोट खींचता हूँ अर्थात् कुएँ से पानी निकालता हूँ। मुझे उस समय ऐसा लगता है कि मैं कुएँ से पानी नहीं, अपितु ब्रिटिश शासन की अकड़ (अहंकार) के कुएँ को खाली कर रहा हूँ।

कवि पुनः कोयल को संबोधित करता हुआ कहता है कि दिन में रुलाने वाली करुणा क्यों जगे अर्थात् दिन में हम करुणा के भाव को चेहरे पर व्यक्त नहीं करते ताकि अंग्रेज शासक यह न समझ लें कि हम टूट चुके हैं। इसलिए तू भी रात को करुणा जगाने वाली ध्वनि करके गजब ढा रही है।

भावार्थ – इन काव्य पंक्तियों में जहाँ एक ओर कवि के मन की निराशा का वर्णन है तो दूसरी ओर अंग्रेज शासन के अत्याचारों को उजागर किया गया है।

इस शांत समय में,
अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो!
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो!

व्याख्या – कवि ने कोयल से पूछा है कि तुम रात के इस शांत समय में और गहन अंधकार को चीरती हुई क्यों रो रही हो ? इस विषय में कुछ तो बोलो। इस प्रकार अपनी मधुर भाषा के द्वारा तुम क्रांति के बीज बो रही हो। कहने का भाव है कि कोयल की ध्वनि में कवि को विद्रोह की भावना अनुभव हुई है। कवि भी अपनी मधुर भाषा में रचित कविता के द्वारा लोगों के मन में विद्रोह की भावना उत्पन्न करता है।

भावार्थ – कवि के कहने का भाव है कि रात के शांत वातावरण में कोयल की ध्वनि मधुर होते हुए भी विद्रोह के भाव युक्त प्रतीत होती है।

काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली, कमली काली,
मेरी लौह-श्रृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की ब्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली!
इस काले संकट- सागर पर
मरने की, मदमाती!
कोकिल बोलो तो!

अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती!
कोकिल बोलो तो!

व्याख्या – प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अंग्रेजी शासन द्वारा भारतीयों पर किए गए अन्याय एवं अत्याचारों का उल्लेख किया है। कैदी रूपी कवि कोयल से कहता है कि तू. काली है और रात भी काली है। इतना ही नहीं, ब्रिटिश शासन के कर्म भी काले हैं अर्थात् उसके द्वारा किए गए सभी कार्य बुरे हैं उसकी कल्पना भी काली है अर्थात् वे बुरा ही सोचते हैं। जिस कोठरी में मुझे बंद किया गया है, वह भी काली है।

मेरी टोपी काली है। मुझे जो कंबल दिया गया है, वह भी काला है। जिन जंजीरों से मुझे बाँधा गया है, उनका रंग भी काला है। हे कोयल! उनके द्वारा बिठाए गए पहरे की हुंकार सर्पिणी की भाँति काली है। हे सखी! इतना कुछ होने पर भी वे गाली देकर बोलते हैं, किंतु इस काले संकट रूपी सागर के लहराने पर अर्थात् जीवन पर संकट मंडराते रहने पर भी हमें मरने की अर्थात् बलिदान देने की मस्ती छाई रहती है। हे कोयल! तू बता कि अपने चमकीले गीतों को इस काले वातावरण पर किस प्रकार तैराती हो। मुझे इसका भेद बता दो।

भावार्थ – कवि ने रात, कोयल और अंग्रेज शासक के कारनामों के रंग में साम्यता दर्शाते हुए ब्रिटिश शासन की काली करतूतों को उजागर किया है।

तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे नसीब कोठरी काली!
तेरा नभ-भर में संचार
मेरा दस फुट का संसार!
तेरे गीत कहावें वाह,
रोना भी है मुझे गुनाह !
देख विषमता तेरी-मेरी,
बजा रही तिस पर रणभेरी !
इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?
कोकिल बोलो तो!
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ!
कोकिल बोलो तो!

व्याख्या – प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने कैदी और कोकिला के जीवन की स्थितियों के अंतर को स्पष्ट करते हुए कैदी के जीवन के प्रति सहानुभूति अभिव्यक्त की है। कैदी कोयल से कहता है कि तुझे बैठने के लिए हरी-भरी टहनी मिली है और मुझे काल-कोठरी मिली हुई है अर्थात् वह कारागार में बंद है। तेरे उड़ने के लिए सारा आकाश है, जबकि मेरे लिए केवल दस फुट की कालकोठरी है

अर्थात् कैदी को दस फुट की छोटी-सी कोठरी में बंद किया हुआ है। इतना ही नहीं, लोग तेरे गीतों को सुनकर वाह-वाह कर उठने हैं अर्थात् तेरे गीतों की सराहना की जाती है किंतु मेरा तो रोना भी अपराध माना जाता है अर्थात् में तो रो भी नहीं सकता। हे कोयल। तेरे-मेरे जीवन में कितना बड़ा अंतर है। तू इस विषमता को देखते हुए भी युद्ध का नगाड़ा बजा रही है।

कवि कौन से पुनः प्रश्न पूछता है कि इस हुंकार पर में अपनी रचना में क्या कर सकता हूँ अर्थात् अपनी काव्य-रचनाओं के माध्यम से अंग्रेजी शासन के विरुद्ध भारतीय जनता में विद्रोह की भावना ही भर सकता हूँ। हे कोवल! तू ही बता कि महात्मा गांधी (मोहनदास कर्मचंद गांधी) के स्वतंत्रता प्राप्ति के व्रत पर प्राणों का आनंद किस में भर दूँ।

भावार्थ – कवि के कहने का तात्पर्य है कि कुछ लोगों के लिए समूचा संसार रहने के लिए है और कुछ की कैद में बंद किया गया है। यहाँ तक कि संपूर्ण भारत ही कारागार जैसा लगता है। अंग्रेजी शासन के इस अन्याय को समाप्त करने के लिए गाँधी जी ने सत्य व्रत धारण किया हुआ है। हमें उसमें सम्मिलित होकर उनका साथ देना चाहिए।

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