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शेखर जोशी का जीवन परिचय
श्री शेखर जोशी हिंदी के प्रमुख कहानी लेखक हैं। इनका जन्म सन् 1932 में अल्मोड़ा (उत्तराखंड) हुआ। 20वीं शताब्दी के छठे दशक में हिंदी साहित्य जगत में एक साथ कई युवा कहानीकारों का आगमन हुआ। उन्ह समाज में हो रहे बदलाव और उससे पड़ने वाले प्रभाव को समेटे हुए तरह-तरह की कहानियाँ लिखी।
इसी प्रकार की कहानियों लिखे जाने से हिंदी कहानी में एक नया मोड़ आया। आगे चलकर इस मोड़ को ‘नई कहानी आंदोलन’ का नाम दिया गया।। श्री शेखर जोशी की कहानियाँ भी इस आंदोलन के प्रगतिशील पक्ष का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन्होंने अपनी कहानियों में मजदूर वर्ग व साधनहीन लोगों के जीवन की विभिन्न विषमताओं को उजागर किया। कहानी कला की दृष्टि से भी श्री शेखर जोशी को कहानियाँ नयापन लिए हुए हैं।
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प्रमुख रचनाएँ
(क) कहानी-संग्रह- कोसी का घटवार’, ‘साथ के लोग’, ‘दाज्यू’, ‘हलवाहा’, ‘नौरंगी बीमार है’ आदि ।
(ख) शब्द-चित्र-संग्रह- एक पेड़ की याद’।
(ग) सम्मान-पहल सम्मान’।
साहित्यिक विशेषताएं
श्री शेखर जोशी की कहानियों में तत्कालीन सामाजिक जीवन के परिवेश को यथार्थ एवं सजीव रूप में प्रस्तुत किया गया है। स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय समाज में जो विकास की प्रक्रिया आरंभ हुई है, उसमें जो कमियों गई हैं, उनको उजागर करना श्री जोशी की कहानियों का प्रमुख लक्ष्य रहा है। इसी प्रकार समाज में बदलते जीवन मूल्यों को भी इन्होंने अपनी कहानियों का विषय बनाया है।
श्री शेखर जोशी ने निम्न तथा मध्य वर्ग को अपनी आर्थिक दयनीय स्थिति से संघर्ष करते हुए दिखाया है। ‘गलता लोहा शीर्षक कहानी का पात्र मोहन घर की आर्थिक दशा अच्छी न होने के कारण ही किसी अच्छे स्कूल में शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता। कुशाग्र बुद्धि होने पर भी वह जीवन में कोई अच्छा पद प्राप्त नहीं कर सकता। उसकी आर्थिक विवशता का समाज किस प्रकार लाभ उठाता है, यह भी कहानी में दर्शाया गया है। श्री जोशी की कहानियों ने बदलते युग में जातिगत भेदभाव के ढीले पड़ते बंधनों को दिखाते हुए यह सिद्ध किया है कि अब ऐसे बंधन केवल दिखावा मात्र ही बनकर रह गए हैं।
भाषा-शैली
श्री शेखर जोशी जी की कहानियों का भाव पक्ष जितना सक्षम है, कलापक्ष भी उतना ही विकसित एवं समृद्ध है। उन्होंने कहानी में पात्रों के चरित्र के विकास को घटनाओं के माध्यम से दिखाया है। विषय चयन युगानुकूल है। भाषा अत्यंत सहज एवं आडंबरहीन है। भाषा में चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है।
श्री जोशी जी की कहानियों की शैली रोचक तथा वर्णन प्रधान है। कहीं-कही संवादात्मक शैली का भी सफल प्रयोग किया गया है। भाषा सरल, सहज एवं पात्रानुकूल है।