मैं सबसे छोटी होऊँ सारांश
प्रस्तुत कविता के रचयिता सुमित्रानंदन पंत जी हैं। यह कविता कक्षा 6 NCERT Chapter 13 वसंत भाग – 1 में संकलित है। इस कविता का मुख्य केन्द्र एक छोटी बच्ची हैं। छोटी बच्ची चाहती है की उसका बचपन हमेशा ऐसे ही बना रहे। उसे उसकी माँ का प्रेम ऐसे ही मिलता रहे।
कविता में पन्त जी ने बाल सुलभ चेष्टाओं का सुंदर वर्णन किया है। इस कविता में सहज रूप में बताया गया है कि बच्चों को उनका बचपन कितना प्रिय होता है। माँ का प्यार, माँ का साथ तथा उसके आँचल की छाया को बच्चा छोड़ना नहीं चाहता। इस कविता में बालिका जानती है कि उसके बड़े होने पर बचपन के साथ-साथ और भी बहुत कुछ छिन जाएगा, इसलिए वह हमेशा छोटी ही बनी रहना चाहती है।
मैं सबसे छोटी होऊँ व्याख्या
1. में सबसे छोटी होऊँ,
तेरी गोदी में सोऊँ,
तेरा अंचल पकड़-पकड़कर
फिरूँ सदा माँ तेरे साथ,
कभी न छोड़ें तेरा हाथ !
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘वसंत’ भाग 1 में संकलित कविता ‘मैं सबसे छोटी होऊँ‘ से लिया गया है। यह कविता प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा लिखी गई है। इन पंक्तियों में बताया गया है। कि बच्ची छोटी रहकर हमेशा माँ का साथ चाहती है।
सरलार्थ – एक छोटी बालिका अपनी माँ से कहती है कि ‘हे माँ मैं कभी बड़ी न होऊ’ मैं सबसे छोटी रहूँ, जिससे मैं तुम्हारी गोद में सोया करूँ हे माँ! मैं तेरा आँचल पकड़कर सदैव तेरे साथ घूमती रहूँ और तेरा हाथ कभी न छोडूं ।
भावार्थ – इसका भाव यह है कि बच्ची चाहती है कि उसका बचपन हमेशा बना रहे, जिससे वह हर समय माँ के साथ ही रहे।
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2. बड़ा बनाकर पहले हमको
तू पीछे छलती है मात !
हाथ पकड़ फिर सदा हमारे
साथ नहीं फिरती दिन-रात !
अपने कर से खिला, घुला मुख,
धूल पोंछ, सज्जित कर गात,
थमा खिलौने, नहीं सुनाती
हमें सुखद परियों की बात!
सरलार्थ – छोटी लड़की अपनी माँ से कहती है कि हे माँ, पहले तो तू हमें बड़ा बना देती है, फिर तू हमारे साथ करने लगती है। बड़ा होने पर तू दिन रात हमारे साथ नहीं रहती है माँ तू अपने हाथ से हमें खिला-पिलाकर, मुँह धुलाकर, धूल झाडू-पोंछकर हमारे शरीर को सुंदर बनाकर हाथ में खिलौने थमा देती है। तू हमें खिलौनों से बहला देती है परंतु परियो वाली कहानी नहीं सुनाती।
भावार्थ – इसका भाव यह है कि जैसे-जैसे बच्चे बड़े होने लगते हैं, वैसे-वैसे माँ बच्चे को अपने से दूर करने लगती है।
3. ऐसी बड़ी न होऊं में
तेरा स्नेह न खोऊँ मैं,
तेरे अंचल की छाया में
छिपी रहूँ निस्पृह, निर्भय,
कहूँ-दिखा दे चंद्रोदय!
सरलार्थ – छोटी बच्ची अपनी माँ से कहती है कि हे माँ मैं इस प्रकार बड़ी होना नहीं चाहती हूँ कि जिससे मैं तेरे प्यार से वंचित रह जाऊँ। मुझे तो हर समय तेरा ही प्यार चाहिए। हे माँ! मैं बिना कुछ चाहे छोटी रहकर हमेशा-हमेशा के लिए तेरे आँचल में छिपी रहना चाहती हूँ। मैं तुझसे बिना डर के कह सकूँ, कि हे माँ! मुझे निकलता हुआ चाँद दिखा दे।
भावार्थ – इसका भाव यह है कि बच्ची हर समय अपनी माँ के आँचल में छिपे रहने के कारण अपने बचपन के बने रहने की इच्छा कर रही है।