स्पीति में बारिश पाठ का सार/सारांश | Spiti Me Barish Summary PDF

स्पीति में बारिश’ शीर्षक पाठ का सार

स्पीति में बारिश’ पाठ एक यात्रा वृत्तांत है। प्रस्तुत पाठ में लेखक कृष्णनाथ जी द्वारा हिमाचल प्रदेश के मध्य में स्थित स्पीति नामक स्थान की यात्रा का वर्णन किया गया है। यह पाठ कक्षा 11 NCERT में लगा हुआ है। इस आर्टिकल में हमने Spiti Me Barish की समरी को शामिल किया है। आप चाहे तो इस Summary की पीडीऍफ़ फाइल भी नीचे के लिंक से डाउनलोड कर सकते है। 

स्पीति हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील है। लाहुल-स्पीति जिला ऊँये दरों और कठिन पहाड़ी रास्तों से घिरा हुआ है। इसलिए यहाँ परस्पर संपर्क ‘वायरलेस सेट’ के माध्यम से होता है। केलंग के बादशाह और काजा के सूबेदार के गाँव संपर्क वायरलेस सेट पर संदेश भेजकर ही होता है। क्योंकि बसंत में भी 170 मील जाना-जाना मुश्किल है। सर्दी की ऋतु में तो प्रायः असमय ही है। 

प्राचीनकाल में यह स्पीति तहसील भारतीय साम्राज्यों का अनाम अंग थी। साम्राज्यों के टूटने पर यह स्वतंत्र थी, लेकिन मध्य युग में यह कभी ला मंडल, कभी कश्मीर महत, कभी बुशहर मंडल, कभी कुल्लू मंडल और कभी ब्रिटिश भारत के तहत है। इसका अलग्य भूगोल ही उसे स्वतंत्रता देता है, इसकी रक्षा करता है और इसका संहार भी करता है। 

जब भी कोई आक्रमण हुआ, स्पीति के लोगों ने कभी उस आक्रमणकारी का मुकाबला नहीं किया क्योंकि यहाँ के लोगों का कठिन जीवन और भूगोल उनमें मुकाबला करने का संहार उत्पन्न नहीं होने देता।

स्पीति तहसील की जनसंख्या लाहुल जिले से भी कम है। लाहुल-स्पीति को 1846 ई० में कश्मीर के राजा गुलाब सिंह ने अंग्रेजों को सौंपा। सन् 1847 में कुल्लू, लाहुल-स्पीति कांगड़ा जिले में शामिल कर दिए गए। अंग्रेजों के शासनकाल में स्पीति का शासन एक स्थानीय शासक द्वारा चलाया जाता था। स्पीति के लोग इसे अपना राजा मानते थे। सन् 1875 में स्पीति रेगुलेशन पास हुआ। रेगुलेशन के अधीन प्रशासन के अधिकार नोनो को दिए गए। उन दिनों के लाहुल-स्पीति का वृत्तांत काँगड़ा जिले के अंतर्गत कुल्लू तहसील में मिलता है। सन् 1960 में लाहुल स्पीति पंजाब राज्य के अंतर्गत एक अलग जिला बना दिया गया। सन् 1966 में जब हिमाचल प्रदेश राज्य बना तो लाहुल-स्पीति उसका उत्तरी छोर का जिला हो गया। यह देश का सबसे अधिक दुर्गम क्षेत्र है

Spiti Me Barish Summary

स्पीति 31:42 और 32.59 अक्षांश उत्तर और 27.25 और 28:42 पूर्व देशांतर के मध्य स्थित है। इसके चारों ओर बने पहाड़ों की औसत ऊँचाई 18,000 फीट है। यह पहाड़ स्पीति को पूरब में तिब्बत, पश्चिम में लाहुल, दक्षिण में किन्नोर और उत्तर में लद्दाख से अलग करते हैं। इसकी मुख्य घाटी इसी नाम की स्पीति नदी की घाटी है। स्पीति नदी पश्चिम हिमालय में लगभग 16,000 फुट की ऊँचाई से निकलकर पूरब में तिब्बत में बहती है। यहाँ से स्पीति तहसील में जाती है। स्पीति तहसील में बहकर पुराने रामपुर सुशहर राज्य में, अब किन्नौर जिले में बहती हुई सतलुज में मिलती है और भी कोई पारा नदी है इसके बाद घाटी है। इन सबमें स्पीति की पाटी ही आबाद है यहाँ भी प्रति वर्गमील चार से भी कम लोग बसते हैं।

लेखक का कथन है कि स्पीति तहसील में बसना अत्यंत कठिन है। यहाँ के लोग आठ-नौ महीने शेष दुनिया से कटे हुए रहते हैं।

यहाँ अत्यंत सदी यहाँ पर गर्म करने के लिए लकड़ी भी नहीं है। लेखक को लोगों के यहाँ रहने की विवशता की जानकारी नहीं है। रोहतांग जोत के पार मध्य हिमालय है। इसमें ही लाहुल-स्पीति की पाटियां हैं। श्री कनियम के अनुसार लाहुल की समुद्र की सतह से ऊंचाई 10,535 फीट है। स्पीति की ऊंचाई 12.986 फीट है औसत ऊंचाई लगभग 13,000 फीट है। उत्तर में हिमालय की जो श्रेणियाँ स्पीति को घेरे हैं, उनमें बारालाचा दर्रे की ऊंचाई का अनुमान 16,221 फीट से लगाकर 16,500 फीट का लगाया गया है। दक्षिण में माने श्रेणी का नाम ‘ज मणि पद्मे हुँ’ बीज मंत्र बौद्धों के माने मंत्र के नाम पर रखा हुआ है। ऐसा लेखक का विचार है। लेखक का कथन है कि अगर ऐसा नहीं है तो उसका मानना है कि इन पहाड़ियों में माने मंत्र का इतना जाप हुआ है कि उन श्रेणियों का माने नाम रख दिया गया है।

इंपीरियत गजेटियर में माने श्रेणी की ऊंचाई 21,646 फीट बताई गई है। कई गाँव समुद्र की सतह से 13,000 फीट से ऊंचे बसे हैं। स्पीति तहसील इसी मध्य हिमालय में स्थित है। लेखक चाहता है कि देश और संसार के मैदानों और पहाड़ों से युवक-युवतियों आए और किलोल करें। लाहुल की तरह ही स्पीति तहसील में भी दो ही ऋतुएँ होती हैं। यहाँ जून से सितंबर तक बसंत ऋतु होती है। शेष वर्ष शीत ऋतु होती है बसंत में जुलाई में औसत तापमान 15° सेंटीग्रेड और सर्दी में जनवरी में औसत तापमान 8° रिकॉर्ड किया गया है। यहाँ ठंड भी लाहुल से ज्यादा पड़ती है। बसत में भी यहाँ फूल नहीं खिलते स्पीति में लाहुल से भी कम वर्षा होती है।

स्पीति में साल में एक फसल होती है। यहाँ की मुख्य फसलें हैं दो किस्म का जो गेहूँ, मटर और सरसों इसमें भी जो मुख्य है। सिंचाई का साधन पहाड़ों से आ रहे नाते हैं या उन पर बनाए कुल हैं। ये नालियों पहाड़ों के किनारे-किनारे बहुत दूर तक जाती हैं। स्पीति नदी का तट इतना चौड़ा है कि इसका पानी किसी काम में नहीं आ पाता। स्पीति में उपजाऊ भूमि बहुत है, लेकिन उसकी सिंचाई के लिए कोई और खोत नहीं है। शायद ऊँचाई, वायुमंडल के दबाव में कमी, ठंड की अधिकता, वर्षा की कमी आदि के कारण यहाँ पेड़ नहीं होते। वर्षा यहाँ की एक घटना है। एक बार अपनी यात्रा के दौरान लेखक और उसके साथी रात को काजा के डाक बंगले में सो रहे थे।

आधी रात के पिछले पहर देखा कि कोई खिड़की खड़का रहा है। लेखक ने लैंप की लो तेज करके खिड़की का पल्ला खोला तो हवा इतनी तेज थी कि हवा का झोका मुँह और हाथ को जैसे छीलने लगा। लेखक ने पल्ला भिड़ा दिया। पत्ते को आड़ से देखा कि बारिश हो रही थी। लेखक बारिश को देख नहीं रहा था। सुन रहा था। अँधेरा, ठंड और हवा का झोंका जा रहा था। स्पीति की घाटी में वर्षा हो रही थी। स्पीति के लोग लेखक और उसके साथियों का स्पीति में आना शुभ कह रहे थे

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