स्वराज्य के फायदे निबंध का सार
प्रस्तुत निबन्ध में मुंशी प्रेमचन्द ने स्वराज्य प्राप्ति के पश्चात् मिलने वाले लाभों के बारे में विवेचनात्मक टिप्पणी की है। सर्वप्रथम वे स्वराज्य का अर्थ बताते हुए कहते हैं कि जब सम्पूर्ण देश का प्रबन्ध प्रजा के हाथों में हो तो उसे स्वराज्य कहते हैं। स्वराज्य में जनता द्वारा चुने हुए पंचों के माध्यम से सम्पूर्ण प्रबन्ध किया जाता है। स्वराज्य में शासन अधिकारी अपने हितों और स्वार्थों के लिए शासन नहीं करते बल्कि प्रजा की भलाई ही उनकी प्रथम प्राथमिकता होती है। स्वराज्य उस स्थिति में समृद्धि नहीं कर सकता कि जब गरीब वर्ग भूखा प्यासा मरे, जानलेवा बीमारियाँ उसे अपना ग्रास बनाती रहें तथा शासक वर्ग भोग-विलास में डूबा रहे। ऐसी स्थिति में देश सौन्दर्य परतन्त्र हो जाता है, पराधीन हो जाता है। वस्तुतः भारत की दशा कुछ इसी तरह है और इस स्थिति से निकलने के लिए कुछ न कुछ अवश्य करना ही होगा। हमारा अतीत गौरवपूर्ण रहा है हमारे पूर्वज स्वाभिमानी रहे हैं उनमें आत्मविश्वास, कर्म और साहस का कभी अभाव नहीं रहा। अतः उनके आदर्शों पर चलकर हम एक बार फिर स्वराज्य प्राप्त करेंगे।
‘स्वराज्य के भेद’ नामक उपशीर्षक में लेखक स्वराज्य के प्रकार बताते हैं। उनके अनुसार स्वराज्य के तीन प्रकार हैं- एक ऐसा जिसका राजा उसी देश का निवासी होता है किन्तु निरंकुश होता है। प्रजा उसके कार्य में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। दूसरा ऐसा जिसका राजा प्रतिनिधियों की सलाह पर कार्य करता है। तीसरा स्वराज्य ऐसा होता है जिसमें राजा का चुनाव प्रजा करती है। वह चुनाव द्वारा बहुमत तय करती है। और जिसका बहुमत होता है वही राजा होता है। वस्तुतः प्रजा द्वारा चुने गए सदस्यों की सहमति से राज्य का राजकाज चलता है। परंतु भारत की स्थिति बड़ी विचित्र है कि यहाँ का राज्य इनमें से किसी भी प्रकार का नहीं है। वह तीनों प्रकारों में से एक में भी नहीं आता। न उसका राजा भारत का है न यहाँ प्रजा द्वारा प्रतिनिधियों को चुना जाता है। वास्तव में भारत में कोई एक राजा नहीं बल्कि समस्त अंग्रेज जात इस देश पर राज करती है और यह जाति कितनी नीच, निर्दयी एवं लालची है यह किसी से छिपा नहीं है। भारत के उद्योग-धंधों, प्रशासनिक पदों, व्यापार और विद्या सभी पर अंग्रेज जाति का अधिकार है। वस्तुतः भारतीय जनता अंग्रेजी राज की अत्याचारी शक्ति से कुचले जाने के लिए अभिशप्त है।
जब स्थिति इतनी भयानक हो तो भारतीय जनता ऐसा राज्य चाहती है जिसमें पंचों के चुनाव के बाद राजा का चुनाव हो। इन पंचों की सलाह से ही राजकाज चले। भारत में यद्यपि कुछ संस्थाएं, सभाएं हैं जो सरकार को सलाह देती हैं किन्तु इन सभाओं के प्रतिनिधियों का चुनाव साधारण जनता द्वारा नहीं होता इसलिए ये सभाएँ कारगर साबित नहीं हो रही हैं। यह अंग्रेजी राज के खर्च, सेना और आमदनी के विषय में कुछ भी कहने का अधिकार नहीं रखती। इसलिए गांधी जी ने कहा था कि हम ऐसा स्वराज्य चाहते हैं जिसमें हमें खर्च, सेना तथा आमदनी के बारे में जानने का पूर्ण अधिकार हो ।
स्वराज्य प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम आत्मनिर्भर बनना पड़ेगा। जब हम अपनी जरूरतों को अपने देश में ही पूरी कर लेंगे तो देश स्वाधीन हो जायेगा। देश में कपड़े की कमी निरन्तर रही है। जिसकी पूर्ति करने के लिए अनाज निर्यात करना पड़ता और देश की जनता भूखी मरती है। फलस्वरूप प्रजा कुकर्म करने के लिए बाध्य है तथा प्रजा पर पुलिस की लाठियाँ चलती हैं प्रेमचन्द जी कहते हैं कि यदि हम स्वयं अधिक कपड़ा निर्मित कर ले तो हमे दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। और देश का धन देश में ही रहेगा। भोग-विलास के लिए हम अपने पैसे को दूसरे देशों में भेजेंगे तो कभी भी स्वावलम्बन और स्वराज्य नहीं प्राप्त कर सकते। गांधी जी ने चर्खा चलाने की बात की। देश के नर-नारियों को चाहिए कि वे चर्खा चलाना आरम्भ करे। वे अपना समय व्यर्थ न गवाँकर देश को आत्मनिर्भर बनाने में लगाएँ। चर्खा कातने से उन्हें दोहरा लाभ होगा। एक तो वे अपना पेट भर सकेंगे तथा दूसरा देश की उन्नति होगी।
स्वराज्य की प्राप्ति के लिए हमें उन व्यवसायों का भी त्याग करना होगा जो हमारी आत्मा को गुलाम बनाते हैं। सरकारी अदालतें, सरकारी नौकरियाँ तथा अंग्रेजी शिक्षा। बालक बालपन में ही नौकरी की लालसा करने लगता है यानी कि बचपन में ही उसकी आत्मा पराधीन हो जाती है। चमचागीरी और चापलूसी उसकी आदत बन जाती है। युवावस्था में भी वह अपनी इस आदत को नहीं छोड़ सकता। सरकारी अदालतें झूठ, कपट, छल और बेईमानी के अड्डे हैं। यहाँ ऐसे दृश्य दिखाई देते हैं जो घृणास्पद होते हैं। लेखक वकीलों के पेशें को सर्वाधिक नीच और पराधीन बनाने का आसान तरीका मानते हैं। वकील सरकारी अदालतों के गुलाम हैं। यहाँ काम करने बालों की आत्मा मर चुकी है। वस्तुतः अदालतों और उनसे जुड़े व्यक्तियों से समाज कल्याण की आशा करना बेईमानी होगी। जो लोग अंग्रेजी राज को अपना रहे हैं ऐसे धन-लोलुप और स्वार्थी हृदयों में स्वराज्य और आत्मनिर्भरता की भावना नहीं पनप सकती।
ऊपर जिन साधनों का जिक्र किया गया है वह ‘असहयोग’ के अन्तर्गत आते हैं। प्रजा के सहयोग के बिना शासन नहीं चल सकता। शासन चलाने में प्रजा का सहयोग धर्म, धन और, विवेक से होना चाहिए परंतु जो सरकार प्रजा पर ही अत्याचार करने लगे उनके अधिकारों का हनन करने लगे तो प्रजा को उस सरकार की कोई सहायता नहीं करनी चाहिए। यहाँ दोष प्रजा का नहीं बल्कि प्रशासन का है। भारत में ऐसा ही समय है। जब प्रशासनिक अधिकारी नाना प्रकार से प्रजा का दमन करने लगे हैं। नेताओं के मुँह पर पट्टी बाँध दी गयी है, आम प्रजा पर गोलियाँ चलायी जा रही हैं। इसलिए प्रजा प्रशासन के विरुद्ध हो गयी है। सरकारी नीतियाँ प्रजा विरोधी हैं तो प्रजा इसका अनुभव करती है। यह तथ्य भी साफ हो गया है कि अब स्वराज्य के बिना देश का कल्याण नहीं हो सकता। इसलिए स्वराज्य प्राप्ति के लिए हमें शान्तिपूर्ण असहयोग की भावना जाग्रत करनी चाहिए। आत्मशुद्धि, निर्भयता और सद्व्यवहार असहयोग के तीन अंग हैं, इनको अपनाकर हमारी आत्मा पवित्र और स्वाधीन हो सकेगी।
स्वराज्य के फायदे गिनना ईश्वर के गुणों को गिनने के बराबर हैं। स्वराज्य में सुख एवं शान्ति का अनुभव होता है। व्यक्ति स्वावलम्बी हो जाता है। परंतु स्वराज्य प्राप्ति का देश को सबसे बड़ा फायदा होगा वह है भारतीय जीवन का पुनरुद्धार । अंग्रेज जाति का प्रधान गुण अगर पराक्रम है तो हमारे जीवन का मुख्य आधार धर्म है। धर्म हमारे जीवन का सूत्र है। पश्चिमी सभ्यता से हमारी सभ्यता मेल नहीं खाती है। लगातार गुलामी सहते-सहते हमारा मानसिक बल विलुप्त हो गया है। पराधीनता ने हमारी बुद्धि को मन्द कर दिया है। हम विचार शून्य हो गये हैं। स्वराज्य हमारी बुद्धि और विचार शक्ति को संचारित कर देगा तथा संसार एक बार फिर भारतवर्ष की ओर देखने के लिए मजबूर हो जाएगा। संसार में हम अछूत, नीच, अनपढ़ गंवार न समझे जायेंगे। अंग्रेजी प्रशासन जो हमारे ऊपर अत्याचार करता है हम उसका विरोध कर सकेंगे। जो जाति हमें अपने ही देश में जाने से रोकेगी उसे हम देश से निकाल दूर करेंगे।
स्वराज्य प्राप्ति के बाद जो देश का उपकार होगा वह है-आर्थिक समृद्धि। प्राचीनकाल से भारत समृद्धशाली देशों में गिना जाता था। इस देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था। अंग्रेजों की लगातार गुलामी ने इस देश को कंगाल देशों का सिरमौर बना दिया है। गरीब जनता यहाँ भूखे पेट सो जाती है। भूमि बंजर हो गयी है। प्रशासन अपने खर्चों को पूरा करने के लिए आम जनता पर करों का बोझ बढ़ा रहा है। शिक्षा के लिए धन का देश में सदा अभाव रहता है परंतु पुलिस और सेना के लिए धन की कभी कमी नहीं होती। यही पराधीनता के प्रमुख लक्षण हैं। स्वराज्य प्राप्ति के पश्चात् इस दिशा में सुधार होने की संभावना है। प्रशासन के खर्च कम करने होंगे। गोरे अफसरों की तनख्वाह खत्म हो जाएगी। भूमिकर कम कर दिये जायेंगे। आम आदमी के लिए न्याय जो इतना महँगा हो गया है; यह कार्य अदालतों की बजाय पंचायतों को सौंप दिया जाएगा और जो पैसा जनता अदालतों में खर्च करती है वह उनके जीवन स्तर को ऊँचा उठाने में फायदेमंद होगा।
जब जनता अपना पैसा एकत्र करेगी तो वह उसे किसी न किसी काम में लगायेगी। इस प्रकार देश में उद्योग धन्धों की शुरुआत होगी। थोड़े दिनो में ही देश आत्मनिर्भर हो जाएगा। हमारा पैसा हमारे देश में ही रहेगा। कारखाने शहरों की बजाय कस्बों और गाँवों में स्थापित किए जाएंगे ताकि प्रजा का गाँव से पलायन रोका जा सके और महानगरों पर से जनता का बोझ कम हो सके।
रेल विभाग का प्रबन्ध अंग्रेजी कम्पनियों के हाथों में होने के कारण यह आम आदमी की पहुँच से बाहर की चीज है। रेलों में सदैव सुख-सुविधा की कमी रही है। तीसरे दर्जे में आम जनता पशुओं की भाँति ठूंस दी जाती है जबकि अधिकारियों के लिए खाली डिब्बे पड़े हैं। इस असंतुलन को ठीक करना होगा। देश में माल ढोने के लिए मालगाड़ियों का अधिक निर्माण किया जाएगा।
मादक वस्तुओं की बिक्री से प्रशासन को आमदनी तो होती है परंतु यह अधर्म के माध्यम से कमाया धन स्वराज्य में खत्म कर दिया जाएगा। मादक पदार्थों की बिक्री पर रोक लगायी जाएगी। क्योंकि ये पदार्थ अमीर-गरीब दोनों के लिए कष्टदायक होते हैं। अन्त में स्वराज्य की विस्तृत चर्चा के बाद लेखक ‘उपसंहार’ नामक उपशीर्षक में गांधी जी की भूमिका का उल्लेख करते हुए लेखक कहते हैं कि महात्मा गांधीजी देश के भक्त हैं। वे त्यागशील एवं राष्ट्रप्रेमी हैं। उनके नेतृत्व में ही स्वराज्य प्राप्ति संभव है। हमें वर्ग, जाति और समुदाय से ऊपर उठकर इन नेताओं के हाथ मजबूत करने चाहिए। ईर्ष्या, द्वेष, और स्वार्थपरता को त्यागकर खुद चरखा चलाएँ।
देश का प्रत्येक नागरिक अगर थोड़ा-सा भी सूत काते तो वह देश के कल्याण में लाभकारी होगा। अन्त में लेखक ईश्वर से प्रार्थना करता है कि ईश्वर प्रत्येक भारतीय को सद्बुद्धि दें और सूत कातने जैसे उच्च एवं पवित्र कार्य में हाथ बँटाएँ ।
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