लोकगीत पाठ का सार & प्रश्न-उत्तर PDF | Class 6th Chapter 14th Hindi

Lokgeet Path Ka Saar

लोकगीत निबंध का सार 

लोकगीत निबंध भगवतशरण उपाध्याय द्वारा लिखा गया है। इस पाठ में लेखक ने भारत के विभिन्न प्रांतों में गाए जाने वाले लोकगीतों के संबंध में अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। हमारे मनोरंजन के प्रमुख साधन गीत हैं। इन गीतों में लोकगीतों का महत्त्व सबसे अधिक है, क्योंकि ये सीधे जनता के संगीत हैं। इनके लिए साधना की आवश्यकता नहीं होती। अनेक त्योहारों और विवाह आदि अवसरों पर स्त्री पुरुषों द्वारा ये गीत गाए जाते हैं। किसी समय में इन गीतों को शास्त्रीय संगीत जितना महत्त्व नहीं दिया जाता था, परन्तु अब तो लोकगीत काफी लोकप्रिय हो रहे हैं।

लोकगीत अनेक प्रकार के होते हैं। मध्य प्रदेश में भील संथालों का स्त्री-पुरुषों द्वारा एक-दूसरे के जवाब में गाया जाने वाला लोकगीत प्रसिद्ध है। पहाड़ियों के ‘पहाड़ी’ लोकगीत अपनी अलग ही पहचान बनाए हुए हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्वी तथा बिहार के पश्चिमी जनपदों में गाया जाने वाला चैता, कजरी, बारहमासा, सावन सुप्रसिद्ध हैं। इसी प्रकार बंगाल में बादल, भतियाली, पंजाब में माहिया, हीर-रांझा, सोहनी-महीवाल, राजस्थान में ढोला-मारू के गीत गाए जाते हैं। इनकी रचनाओं में सिर्फ कल्पना ही नहीं रोज़मर्रा के जीवन के विषय होते हैं, जो सीधे हृदय को छू लेते हैं। बिहार तथा उत्तर प्रदेश आदि में गाए जाने वाले कहरवा, बिरहा, धोबिया आदि गीत बड़ी भीड़ इकट्ठा कर लेते हैं, क्योंकि इनकी भाषा में गाँवों और इलाकों की भाषा होती है जिससे सुनने वालों का मन प्रसन्न हो जाता है। भोजपुरी का ‘बिदेसिया’ लोकगीत लोकप्रिय तो है ही, सुनने वाले को करुणा और विरह के रस में सराबोर कर देता है।

दूसरे प्रकार के लोकगीतों में जगनिक का आल्हा अपनी अलग ही पहचान बनाए हुए है। इसका अपना अलग ही राग और बोल है। यों तो लोकगीत पुरुष भी गाते हैं, परंतु इसका संबंध विशेष रूप से स्त्रियों से है। प्राचीनकाल से ही स्त्रियाँ त्योहारों पर नदियों में नहाने जाते समय, नहाते समय, विवाह के गीत, ज्योनार गीत, विवाह आदि के अवसर पर संबंधियों के लिए प्रेमयुक्त गाली भरे गीत गाती रही हैं। महाकवि कालिदास ने भी इनका वर्णन अपने ग्रंथों में किया है। ‘बारहमासा’ गीत तो स्त्री-पुरुष दोनों एक साथ मिलकर गाते हैं। एक साथ कई कंठों से गाए जाने वाले ये गीत त्योहारों के अवसर पर बहुत ही अच्छे लगते हैं। स्त्रियाँ तो सभी ऋतुओं में समूह के रूप में गाती हैं जिनमें होली और कज़री तो उनकी अपनी ही बीज है। पूरब की बोलियों में अधिकतर विद्यापति के गीत गाए जाते हैं। ‘गरबा’ नामक गुजरात के लोकगीत को स्त्रियाँ विशेष ढंग से घेरे में घूम-घूमकर गाती हैं। इस प्रकार भारत के गाँवों के गीत वास्तव में अनंत है, जहाँ जीवन इठला-इठलाकर लहराता है।

अभ्यास के सभी प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1. निबंध में लोकगीतों के किन पक्षों की चर्चा की गई है? बिंदुओं के रूप में उन्हें लिखो ।

उत्तर – निबंध में लोकगीतों की लोच, ताजगी, लोकप्रियता उनके विभिन्न प्रकार, उनके गाने के तरीकों तथा गाए जाने के अवसरों; जैसे पक्षों पर चर्चा की गई है

प्रश्न 2. हमारे यहाँ स्त्रियों के खास गीत कौन-कौन से हैं?

उत्तर- हमारे यहाँ स्त्रियों के खास गीत, होली के गीत, सावन के गीत (कजरी), जन्म उत्सव के गीत, विवाह के गीत, मटकोड़ के गीत, त्योहारों के गीत तथा नदी में नहाते समय के गीत आदि हैं।

प्रश्न 3. निबंध के आधार पर और अपने अनुभव के आधार पर (यदि तुम्हें लोकगीत सुनने के मौके मिले हैं तो) तुम लोकगीतों की कौन सी विशेषताएँ बता सकते हो ?

उत्तर- लोकगीतों की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

(1) लोकगीत गाँव के लोगों के द्वारा गाया जाने वाला गीत है।

(2) ये गीत प्रायः ऋतुओं, त्योहारों तथा विशेष अवसरों पर गाए जाते हैं जो मन को बहुत अच्छे लगते हैं।

(3) इनके राग व इनके बोल अलग ही होते हैं। (4) ये क्षेत्रीय भाषा में गाए जाते हैं इसलिए विशेष आकर्षण के केंद्र होते हैं।

प्रश्न 4. ‘पर सारे देश के … अपने-अपने विद्यापति हैं? इस वाक्य का क्या अर्थ है? पाठ पढ़कर मालूम करो और लिखो ।

उत्तर – ‘पर सारे देश के अपने-अपने विद्यापति हैं’ का अर्थ है कि जिस प्रकार मिथिला क्षेत्र में मैथिल कोकिल विद्यापति विशेष रूप से लोकप्रिय हैं, उसी प्रकार हर क्षेत्र में हर स्थान पर कोई-न-कोई प्रसिद्ध लोकगीत रचनाकार पैदा हुआ है, जिसके गीतों की उस क्षेत्र विशेष में धूम रहती है। बुंदेलखंड के लोकगीत रचनाकार जगनिक का ‘आल्हा’ इसका उदाहरण है।

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अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1. क्या लोकगीत और नृत्य सिर्फ गाँवों या कबीलों में ही गाए जाते हैं? शहरों के कौन से लोकगीत हो सकते हैं? इस पर विचार करके लिखो।

उत्तर- हाँ, लोकगीत और नृत्य सिर्फ गाँवों और कबीलों में ही गाए जाते हैं। शहरों से लगे हुए जो गाँव हैं, उन क्षेत्रों में उनके अपने लोकगीत होते हैं, जो उनकी ही मातृ-भाषा में उनके जीवन के रंगों का वर्णन करते हैं। यद्यपि शहरों में लोकगीत कम ही गाए जाते हैं, परंतु कुछ विशेष त्योहारों व अवसरों पर जरूर गाए जाते हैं।

प्रश्न 2. ‘जीवन जहाँ इठला-इटलाकर लहराता है, वहाँ भला आनंद के स्रोतों की कमी हो सकती है? उद्दाम जीवन के ही वहाँ के अनंत संख्यक गाने प्रतीक हैं।’ क्या तुम इस बात से सहमत हो? ‘बिदेसिया’ नामक लोकगीत से कोई कैसे आनंद प्राप्त कर सकता है और वे कौन लोग हो सकते हैं, जो इसे गाते सुनते हैं? इसके बारे में जानकारी प्राप्त करके कक्षा में सबको बताओ।

उत्तर- ‘जीवन जहाँ……….. गाने प्रतीक हैं। हम इस बात से पूर्ण रूप से सहमत हैं। ‘बिदेसिया’ गीतों में अधिकतर रसिक प्रियों और प्रियाओं की बात होती है, या परदेशी प्रेमी की गाँवों से जो लोग शहरों में रोज़गार के लिए आते हैं और बहुत समय तक गाँव नहीं जा सकते तो उनके घर के लोग ‘बिदेसिया’ गीतों के द्वारा उन्हें याद भी कर लेते हैं। इन गीतों से करुणा और विरह का रस बरसता है। इसे सुनकर लोग आनंद प्राप्त करते हैं। बिहार प्रदेश के भोजपुर जिले के लोग इन्हें गाते हुए देहात में घूमते हैं।

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