पत्रकारिता के विभिन्न प्रकार | Patrakarita Ke Vibhinn Prakar

पत्रकारिता के प्रकार-जीवन की विविधता और नये-नये साधनों के आविष्कार ने पत्रकारिता को बहुआयामी बना दिया है। वर्तमान काल क्योंकि विशिष्टीकरण का काल है अतः पत्रकारिता के क्षेत्र में आने वाले पत्रकार अपनी रुचि और प्रवृत्ति के अनुसार अपने लिए विशिष्ट क्षेत्रों का चुनाव कर रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप पत्रकारिता के विभिन्न स्वरूप उभरकर सामने आ रहे हैं। इन स्वरूपों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है। 

पत्रकारिता के विभिन्न प्रकार

(1) अन्वेषी (खोजी) पत्रकारिता (2) आर्थिक पत्रकारिता (3) ग्रामीण पत्रकारिता (4) व्याख्यात्मक पत्रकारिता (5) विकास पत्रकारिता (6) संदर्भ पत्रकारिता (7) संसदीय पत्रकारिता (8) खेल पत्रकारिता (9) रेडियो पत्रकारिता (10) दूरदर्शन पत्रकारिता ( 11 ) फोटो पत्रकारिता (12) विधि पत्रकारिता ( 13 ) अंतरिक्ष पत्रकारिता (14) सर्वोदय पत्रकारिता (15) चित्रपट पत्रकारिता। 

1. अन्वेषी पत्रकारिता 

जिस पत्रकारिता में जासूसी को प्रस्तुत किया जाता है उसे अन्वेषी या अनुसंधानात्मक पत्रकारिता कहा जाता है। इसमें पत्रकार अपनी प्रतिभा और तत्परता के बल पर शारीरिक जोखिम उठाकर गुप्तचर के रूप में कार्य करते हैं। इसके द्वारा समसामयिक विषयों, घटनाओं तथ्यों तथा स्थितियों का सूक्ष्म सर्वेक्षण कर अनुसंधान के आधार पर चौंकाने वाले निष्कर्ष निकाले जाते हैं। बाब ग्रीन का इस सम्बंध में कथन है कि जिस तथ्य को कोई छिपाना चाहे अथवा जो अनुद्घाटित हो, वैसे समाचार को प्रकाश में लाने का कार्य अन्वेषी पत्रकारिता का है। अमरीका का वाटरगेट कांड’ तथा भारत का ‘कफन घोटाला’ और ‘बोफोर्स तोप सौदा’ इसके सुन्दर उदाहरण है।

2. आर्थिक पत्रकारिता 

अर्थ या पैसा जीवन का एक प्रमुख तत्व है। इसके बिना जीवन को चलाना अत्यन्त कठिन है। अर्थ से जुड़े हुए विभिन्न कार्यकलापों और गतिविधियों को उद्घाटित करने के लिए इस पत्रकारिता का विकास हो रहा है। पूंजी बाज़ार, वस्तु बाज़ार, बैंक, श्रम, ग्रामोद्योग, बजट, शेयर, राष्ट्रीय आय आदि से सम्बद्ध समाचार आज के पाठक को आकर्षित कर रहे हैं। ‘द इकोनामिक टाइम्स,’ ‘व्यापार भारती’, ‘फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ जैसे समाचारपत्रों की बढ़ती हुए प्रसार संख्या इसके सुन्दर उदाहरण हैं।

3. ग्रामीण पत्रकारिता

भारत की अधिकांश जनता गांवों में बसती है। गांव, देश के स्वतंत्र होने के पचपन वर्ष बाद भी पिछड़े हुए हैं। सुदूर गांवों में नयी चेतना तथा विकास के स्वर को समाचारपत्र ही पहुँचा सकते हैं। इस संदर्भ में विख्यात पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी लिखते हैं- “राष्ट्र महलों में नहीं रहता, प्रकृत राष्ट्र के निवास-स्थल वे अगणित झोपड़े हैं जो गांवों और पुरवों में फैले हुए खुले आकाश के देदीप्यमान सूर्य और शीतल चन्द्र और तारागण से प्रकृति का संदेश लेते हैं। इसलिए राष्ट्र का मंगल और उसकी जड़ उस समय तक मजबूत नहीं हो सकती जब तक कि अगणित लहलहाते पौधों की जड़ों में जीवन का जल नहीं सींचा जाता।” ग्रामीण स्वास्थ्य, कुटीर उद्योग, लोककलाओं, लोक संस्कृति आदि को समर्पित पत्रकारिता ही ग्रामीण पत्रकारिता है।

4. व्याख्यात्मक पत्रकारिता

जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, इस पत्रकारिता के अन्तर्गत समाचार कार्यालय में समाचार एजेंसियों तथा संवाददाताओं द्वारा प्रेषित समाचारों का विश्लेषण, उनकी पृष्ठभूमि और उनके भविष्य में होने वाले परिणामों का व्याख्यात्मक पत्रकारिता द्वारा समाधान दिया जाता है। इस पत्रकारिता का उद्देश्य समाचारों के वास्तविक परिवेश में उनका मूल्यांकन करना होता है। आधुनिकतम द्रुतगामी संचार साधनों द्वारा प्रेषित समाचारों के स्पष्टीकरण के लिए इस पत्रकारिता की आवश्यकता पड़ती रहती है।

5. विकास पत्रकारिता

जिस पत्रकारिता में सामाजिक, आर्थिक तथा वैज्ञानिक प्रगति से सम्बंधित विकास के समस्त पक्षों पर प्रकाश डाला जाता है उसे विकास पत्रकारिता कहते हैं। देश के किसी भाग में कोई नहर बनती है या कोई सरकारी उद्योग स्थापित होता है तो अभियन्ता और ठेकेदार मिलकर गोलमाल करते हैं। कहीं भ्रष्टाचार या गवन होता है, ये सभी विकास पत्रकारिता के अन्तर्गत आते हैं। इस पत्रकारिता में यद्यपि दृष्टि विकास पर केन्द्रित होती है परन्तु फिर भी भ्रष्टाचार के मामले भी इसी के अन्तर्गत आ जाते हैं। उद्योग-धंधों, विज्ञान, औषधि आदि अनेक क्षेत्रों में हो रहे विकास की ओर भी यही संकेत करती है। केन्द्र सरकार द्वारा प्रकाशित ‘योजना’ पत्रिका विकास पत्रकारिता का उदाहरण प्रस्तुत करती है।

6. संदर्भ पत्रकारिता

इस पत्रकारिता में जो लोग कार्य करते हैं वे स्तम्भ लेखकों, संवाददाताओं, प्रशासनिक अधिकारियों तथा संपादकों को आवश्यकता पड़ने पर संदर्भों की आपूर्ति करते हैं। ये लोग पत्रकारिता तथा पुस्तकालय विज्ञान में प्रशिक्षित होते हैं तथा पुरानी कतरनों, लेखों, संदर्भों, ग्रंथों तथा चित्रों द्वारा उनकी सहायता करते हैं। इन्हें संस्थान के विश्वकोश भी कहा जाता है।

7. संसदीय पत्रकारिता

इस पत्रकारिता के अन्तर्गत संसद के दोनों सदनों, प्रादेशिक विधान सभाओं, परिषदों की कार्यवाही की रिपोर्टिग अत्यन्त सावधानी से की जाती है। जरा सी असावधानी हो जाने पर संसद की अवमानना का प्रश्न उठ सकता है अतः सावधानीपूर्वक कार्य किया जाता है। ‘संसद कार्यवाही प्रकाशन अधिनियम, 1956 को पूरी तरह से समझकर ही समाचारपत्र के लिए सामग्री तैयार की जाती है।

8. खेल पत्रकारिता

समाचारपत्रों का उनके आकार के अनुसार एक पृष्ठ खेल समाचारों को समर्पित होता है। खेलों के विषय में दो प्रकार से समाचार लिखे जाते हैं-अग्रिम तथा चल। अग्रिम लेखों में सम्मिलित होने वाली टीमें खिलाड़ियों के नाम, कोड़ा-व्यवस्था और खेल-विशेष की पृष्ठभूि को दिया जाता है जबकि ‘चल’ लेख में खेल का निष्पक्ष और समीक्षात्मक विश्लेषण किया जाता है। समाचार को रोचक और आकर्षक बनाने के लिए लेखक तथ्यों, टिप्पणियों, उक्तियों आदि का प्रयोग करता है। वह खेल के पूर्व इतिहास की पृष्ठभूमि का भी व्यवहार करता है। इस वर्ष हुए विश्व क्रिकेट कप के अवसर पर ग्रेग चैपल, दिलीप वेंगसरकर, रवि शास्त्री, चेतन शर्मा के संवाद दोनों ही प्रकार के थे। ‘स्पोर्ट्स वीक’, ‘खेलयुग’, ‘क्रिकेट सम्राट्’, ‘खेल-खिलाड़ी’ आदि अनेक पत्रिकाएँ खेल पत्रकारिता को आगे बढ़ा रही हैं।

9. रेडियो पत्रकारिता

रेडिया पत्रकारिता के अन्तर्गत समाचार दर्शन, समाचार बुलेटिन, सामयिक समीक्षा, व्याख्यात्मक सामग्री, ध्वनि संपादन, समाचार वाचन तथा अन्य प्रकार की प्राविधिक जानकारी को समाहित किया जा सकता है।

10. दूरदर्शन पत्रकारिता

गत बीस वर्षों से इस पत्रकारिता का पर्याप्त विकास हुआ है। चित्र और ध्वनि के प्राविधिक ज्ञान, लेखन और वाचन की क्षमता तथा इलेक्ट्रॉनिकी जानकारी के द्वारा इसमें सफलता प्राप्त होती है। दूरदर्शन पत्रकार को अपने साथ छायाकारों को ले जाना पड़ता है। छायाकार चित्रों से तथा पत्रकार अपनी लेखन और वाचन कला से इसे रोचक और प्रभावशाली बनाता है।

11. फोटो पत्रकारिता

चित्रों का प्रभाव शब्दों से अधिक होता है। सुनी सुनायी बात और आँखों देखी बात में पर्याप्त अन्तर होता है। चित्र के आते ही कहानी की झलक सी मिल जाती है जबकि शब्दों के एक बड़े समूह से गुजरकर तथ्य सामने आता है इसलिए यह पत्रकारिता अधिक आकर्षक है। चित्र तकनीक में, क्रान्तिकारी परिवर्तन आ जाने से यह पत्रकारिता काफी लोकप्रिय हो गयी है। फोटो पत्रकार समाचारों से जुड़े हुए चित्र लेकर उनका प्रयोग करते हैं। इनके क्षेत्रों में पशु-पक्षी, ऐतिहासिक भवन, प्राकृतिक दृश्य तथा समारोह स्थल आदि आते हैं। इस पत्रकारिता में फोटो खींचने का ज्ञान तथा समाचार चेतना का होना अत्यन्त आवश्यक है।

12. विधि पत्रकारिता

इस पत्रकारिता के अन्तर्गत देश के कानूनों, मौलिक अधिकारों, मानहानि, अदालत अवमानना, अपमान-लेख, सार्वजनिक व्यवस्था, विदेशी राज्यों के साथ सम्बंध, भारतीय डाक-तार अधिनियम, समुद्र सीमा शुल्क, पुस्तक पंजीयन नियम, कॉपी राइट अधिनियम आदि अनेक विधियों आ जाती हैं। विधि पत्रकार को इस प्रकार की विधियों और कानूनों की जानकारी होनी चाहिए तभी वह इस प्रकार की पत्रकारिता करने में सफल हो सकता है।

13. अंतरिक्ष पत्रकारिता

आधुनिक काल में सूचना का आधार आकाशीय ग्रह और उपग्रह बन चुके हैं। पृथ्वी अंतरिक्ष में घूमती है और सूर्य का चक्कर लगाती है। चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर घूमता है। उपग्रहों के कारण संचार की दुनिया में क्रान्ति आ गई है। अंतरिक्ष संचार प्रणाली के कारण समाचारों और चित्रों का संप्रेषण हो रहा है। उपग्रहों के कारण एक ही समाचारपत्र के कई संस्करण प्रकाशित हो रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स विधियों से समाचार, शीर्षक, लेख, फोटो, विज्ञापन को कमान्ड देकर वीडियो स्क्रीन पर देखकर महत्त्व के आधार पर पृष्ठ का समायोजन कर लिया जाता है। मुद्रण, संप्रेषण और प्रकाशन के क्षेत्रों में हो रहे परिवर्तन अंतरिक्ष पत्रकारिता के अन्तर्गत आकर उसकी काया बदल रहे हैं।

14. सर्वोदय पत्रकारिता

इस पत्रकारिता करने वाले पत्रकार को अत्यन्त धैर्य और संयम से काम लेना पड़ता है। सर्वोदय पत्रकार के मन में किसी वर्ग, जाति, धर्म या संप्रदाय के प्रति किसी प्रकार का द्वेष नहीं होता। वे सभी लोगों के उदय, उनकी उन्नति के लिए सोचते हैं और प्रत्येक समाचार में अपने ‘सर्वजन हिताय’ दृष्टिकोण को प्रस्तुत करते हैं। हिन्दी पत्रकारिता के गांधी युग में ‘यंग इंडिया’, ‘नवजीवन’, ‘हिन्दी नवजीवन’, ‘हरिजन’ आदि समाचारपत्र सर्वोदय पत्रकारिता करते रहे हैं। इसी प्रकार गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित रचनाएँ भी इसी पत्रकारिता की उदाहरण कही जा सकती हैं।

15. चित्रपट पत्रकारिता

प्रत्येक समाचारपत्र में सिने उद्योग से जुड़े हुए समाचार होते हैं। कभी ये समाचार सिने-पृष्ठ पर प्रकाशित होते हैं तो कभी सिने-कॉलमों में। इन समाचारों में सिने जगत् के कलाकारों, अभिनेताओं अभिनेत्रियों के कार्यकलापों, उनकी फिल्मों, फिल्मों की इनडोर या आउडटोर शूटिंग आदि पर लेख, टिप्पणियाँ या रोचक सामग्री होती है जिसे युवा वर्ग पसन्द करता है। कौन सी फिल्म हिट हो रही है और कौन सी बॉक्स आफिस पर पिट रही है किस फिल्म का मुहूर्त हो रहा है और कौन बड़ा अभिनेता उसका उद्घाटन कर रहा है, किस शराब-पार्टी में झगड़ा हुआ और किस में मारपीट हुई इन सभी की चर्चा इस पत्रकारिता में होती है। सिने पत्रकार मिर्च-मसाला लगाकर ऐसे कॉलमों को प्रस्तुत करते हैं और पाठक इन्हें चटखारे ले-ले कर पढ़ते हैं। मायानगरी में घूमने वाले पत्रकारों की यह रोचक सामग्री चित्रपट पत्रकारिता कहलाती है। फिल्मी दुनिया’, ‘फिल्मी कलियां’, ‘मायापुरी’, ‘स्टारडस्ट’, ‘चित्रलेखा’, ‘सुषमा’ आदि अनेक पत्रिकाएँ और उनके स्तम्भ इसके उदाहरण हैं।

पत्रकारिता के उपर्युक्त प्रकारों के अतिरिक्त दो और भी प्रकार हैं जिन पर संक्षेप में विचार करना आवश्यक प्रतीत होता है। ये हैं-

(क) कार्टून पत्रकारिता और (ख) वीडियो पत्रकारिता ।

(क) कार्टून पत्रकारिता 

आजकल लगभग प्रत्येक समाचारपत्र में, जो कार्टूनिस्ट का खर्चा उठा सकता है, कार्टूनिस्ट हैं। ये कार्टूनिस्ट ऐसे कार्टून बनाते हैं जिनकी स्मृति पाठक के मन में वर्षों तक बसी रहती है। चित्रों की भाँति समाचार को आकर्षक बनाने में इनका भी योगदान रहता है। कार्टूनकार अपने कार्टूनों के माध्यम से अर्थपूर्ण, ठोस, रचनात्मक, व्यंग्यात्मक तथा संक्षिप्त टिप्पणियां या व्याख्या प्रस्तुत करता है। कार्टूनों के माध्यम से किसी राजनीतिक, सामाजिक या समसामयिक समस्या अथवा गतिविधि पर व्यंग्य या टिप्पणी की जाती है। ‘शंकर्ज वीकली’ इस प्रकार की पत्रिका रही है। शंकर मण इस प्रकार के कार्टूनकार हैं।

(ख) वीडियो पत्रकारिता

अमेरिका में ‘न्यू जर्नलिज्म’ का आन्दोलन पचास वर्ष पुराना है। इसे ही वीडियो पत्रकारिता कहा जाता है। इसमें दृश्य-श्रव्य संचार माध्यम से समाचारवाचक अपनी बात को एक टिप्पणीकार की भाँति कहता है वे अपने चेहरे, भंगिमा और आवाज़ के आरोह-अवरोह का प्रयोग कर पृष्ठभूमि में दिखाये जाने वाले दृश्यों पर टिप्पणी करते हैं भारत में ‘मूवी वीडियो’, ‘इन साइट’, ‘न्यूज ट्रैक’, ‘कालचक्र’, ‘लहरे’ आदि पत्रिकाएँ वीडियो पत्रकारिता के क्षेत्र में अग्रसर हैं।

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