वर्तनी की परिभाषा / वर्तनी का स्वरूप / Vartni Ki Paribhasha

वर्तनी की परिभाषा

वर्तनी का शाब्दिक अर्थ है वर्तन करना अर्थात् किसी का अनुगमन करना। लिखित भाषा में लेखनी उच्चरित ध्वनियों का अनुगमन करती है। ध्वनियों के लिए लिपि-चिह्नों एवं उनके संयोजन को सुनिश्चित करना वर्तनी का कार्य है।

वर्तनी का स्वरूप

वर्तनी के स्वरूप निर्धारण के अंतर्गत किसी भाषा की लेखन व्यवस्था के लिए निश्चित किए गए नियमों पर विचार किया जाता है तथा लिखते समय उन नियमों का अनुकरण किया जाता है। वर्तनी के निश्चित स्वरूप से शब्दों का शुद्ध रूप सामने आता है, जो भाषा को शुद्ध करने में सहायक होता है। भारत सरकार द्वारा हिंदी भाषा की वर्तनी के लिए अक्षर एवं शब्द स्तर पर वर्णों, संयुक्त वर्णों, विभक्ति चिह्नों, क्रिया पदों, विराम चिह्नों, अव्यय, श्रुतिमूलक ‘य’, ‘व’, अनुस्वार, अनुनासिक, हल् चिह्न, ध्वनि परिवर्तन, पूर्वकालिक प्रत्यय, हिंदीतर ध्वनियों व शिरोरेखा से संबंधित नियम निश्चित किए गए हैं। वर्तनी के नियमों की जानकारी के पूर्व हिंदी भाषा के मानक वर्णों की जानकारी प्राप्त कर लेना आवश्यक है, जो निम्नलिखित हैं –

स्वर

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ ।

व्यंजन

क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
श ष स ह

आयोगवाह

(अः) (:)

हिंदी वर्तनी के नियम

हिंदी वर्तनी संबंधी प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं-

हिन्दी की वर्तनी में संयुक्त वर्ण संबंधी नियम-हिंदी की वर्तनी में संयुक्त वर्ण संबंधी निम्नलिखित नियम हैं –

1. खड़ी पाई वाले व्यंजनों का संयुक्त रूप उनकी खड़ी पाई को हटाकर बनाया जाए; जैसे-

ख्याति, लग्न, विघ्न, कच्चा, छज्जा – व्यास 

नगण्य,

कुत्ता, पथ्य, ध्वनि, न्यास, प्यास, डिब्बा

श्लोक

राष्ट्रीय स्वीकृत

यक्ष्मा

सभ्य, रम्य, शय्या, उल्लेख

2. क व फ के संयुक्त वर्ण क्क, फ्त की तरह बनाए जाएँ, न कि पक्का या रफ्तार की तरह।

3. ड., ट, ड, द और ह के संयुक्ताक्षर हल् चिह्न लगाकर ही बनाए जाएँ यथाः

वाङ्मय, लट्टू, बुड्ढा, विद्या, चिह्न, ब्रह्मा वांणमय लट्टू, बुढा, विद्या, चिह्न ब्रह्मा

नहीं ।

4. र के प्रचलित तीन रूप इस प्रकार ही रहने चाहिए- प्रकार, धर्म, राष्ट्र (पू+र), (इ+म), (ट्+र)

श्र का प्रचलित रूप ही मान्य हो। इसे “श” के रूप में न लिखा जाए। त् + र के संयुक्त रूप लिए त्र और व दोनों रूपों में से किसी एक के प्रयोग की छूट है।

किन्तु “क्र” को “कृ” के रूप में न लिखा जाए। (vi) संस्कृत के संयुक्ताक्षर पुरानी शैली से भी लिखे जा सकेंगे, उदाहरणार्थः संयुक्त, चिह्न, विद्या, चञ्चल, विद्वान, वृद्ध, अङ्क, द्वितीय, बुद्धि आदि

हिन्दी की वर्तनी में विभक्ति चिह्नों के वर्तन संबंधी नियम-हिन्दी की वर्तनी में विभक्ति चिह्नों के वर्तन के निम्नलिखित नियम हैं-

(i) विभक्ति चिह्न संज्ञा शब्दों से अलग करके लिखे जाने चाहिएँ। जैसे- संजीव ने,

राकेश को, राम से, स्त्री के लिए, छत पर आदि ।

(ii) सर्वनाम शब्दों में विभक्ति चिह्न सर्वनामों के साथ मिलाकर लिखे जाने चाहिए। जैसे- उसने, मुझको, उससे, उसपर, इसलिए, मेरा आदि ।

(iii) सर्वनामों के साथ यदि दो विभक्ति चिह्न हों तो उनमें से पहला मिलाकर तथा दूसरा अलग करके लिखा जाना चाहिए; जैसे-उसके लिए, इनमें से ।

(iv) सर्वनाम एवं विभक्ति के बीच यदि ‘ही’, ‘तक’ आदि निपात का प्रयोग हो तो विभक्ति चिह्न अलग से लिखा जाना चाहिए; जैसे-उस ही के लिए, आप तक को आदि।

हिंदी वर्तनी में क्रिया पदों संबंधी नियम-हिंदी वर्तनी में क्रिया पदों संबंधी नियम हैं कि संयुक्त क्रियाओं में सभी अंगभूत क्रियाएँ अलग-अलग लिखी जाएँ; जैसे-पढ़ा करता था, आ सकता है, जाया करता है, खाया करता है, जा सकता है, कर सकता है, किया करता था, पढ़ा करता था, खेला करेगा, घूमता रहेगा, बढ़ते चले जा रहे हैं आदि ।

हिंदी वर्तनी में अव्यय संबंधी नियम-हिंदी वर्तनी में अव्यय संबंधी निम्नलिखित नियम हैं- (i) तक, साथ आदि अव्यय सदा पृथक् लिखे जाएँ; जैसे- आपके साथ, यहाँ तक । हिंदी में ही, तो, सो, भी, श्री, जी, तक भर, मात्र, आदि अनेक प्रकार के भावों का बोध कराने वाले अव्यय हैं। कुछ अव्ययों के आगे विभक्ति चिह्न भी आते हैं; जैसे—अब से, तब से, यहाँ से, वहाँ से, सदा से आदि। नियम के अनुसार अव्यय सदा पृथक् ही लिखे जाने चाहिए, जैसे-आप ही के लिए, मुझ तक को, आपके साथ, गज़ भर कपड़ा, देश भर, रात भर, दिन भर, वह इतना भर कर दे, मुझे जाने तो दो, काम भी नहीं बना, पचास रुपये मात्र आदि। सम्मानार्थक श्री और जी अव्यय भी पृथक् लिखे जाएँ, जैसे-श्री श्रीराम, कन्हैयालाल जी, महात्मा जी आदि ।

(ii) समस्त पदों में प्रति, मात्र, यथा, आदि अव्यय पृथक् नहीं लिखे जाएँगे; जैसे- प्रतिदिन, प्रतिशत, मानवमात्र, निमितमात्र, यथासमय, यथोचित आदि । 5. श्रुतिमूलक य, व के संबंध में वर्तनी के नियम-

(i) श्रुतिमूलक य, व अर्द्धस्वर होने के कारण कई बार अ, इ, आ, ए आदि के स्थान पर प्रयुक्त हो जाते हैं, वहाँ इनका प्रयोग न किया जाए बल्कि मूल स्वर का ही प्रयोग किया जाए। जैसे—लिए () लिये (x), हुआ () हुवा (x), नई () नयी (x) आदि। यह नियम, क्रिया, विशेषण, अव्यय आदि सभी रूपों और स्थितियों में लागू किया जाए। जैसे-दिखाए गए, राकेश के लिए, गेंद के लिए हुए, नई दिल्ली आदि ।

(ii) जहाँ य श्रुतिमूलक व्याकरणिक परिवर्तन न होकर मूल तत्त्व हो, वहाँ उसे ‘य’ के रूप में ही लिखा जाए; जैसे- स्थायी () स्थाई (x), अव्ययी भाव (४) अव्यई भाव (x), दायित्व (v) दाइत्व (x)

अनुनासिक संबंधी नियम इस प्रकार हैं-

1. संयुक्त व्यंजन के रूप में जहाँ पंचमाक्षर के बाद सबर्गीय शेष चार वर्णों में से कोई वर्ण हो, तो एकरूपता और मुद्रण लेखन की सुविधा के लिए अनुस्वार का ही प्रयोग करना चाहिए; जैसे- गंगा, चंचल, ठंडा, संध्या, संपादक आदि में पंचमाक्षर के बाद उसी वर्ग का वर्ण आगे आता है, अतः पंचमाक्षर पर अनुस्वार का प्रयोग होगा (गङ्गा, चञ्चल, ठण्डा, सन्ध्या, सम्पादक का नहीं)। यदि पंचमाक्षर दोबारा आए तो पंचमाक्षर अनुस्वार के रूप में नहीं बदलेगा जैसे वाड्.मय, अन्न, सम्मेलन, सम्मति, उन्मुख आदि । अतः वामय, अंन, संमेलन, संमति, उंमुख आदि रूप ग्राह्य नहीं हैं।

2. चन्द्रबिंदु के बिना प्रायः अर्थ में भ्रम की गुंजायश रहती है; जैसे- हंस: हँस, अंगनाः अँगना आदि में। अतएव ऐसे भ्रम को दूर करने के लिए चन्द्रबिन्दु का प्रयोग अवश्य किया जाना चाहिए। किन्तु जहाँ (विशेषकर शिरोरेखा के ऊपर जुड़ने वाली मात्रा के साथ) चन्द्रबिन्दु के प्रयोग से छपाई आदि में बहुत कठिनाई हो और चंद्रबिन्दु के स्थान पर बिंदु (अनुस्वार चिह्न) का प्रयोग किसी प्रकार का भ्रम उत्पन्न करे, वहाँ चन्द्रबिन्दु के स्थान पर बिन्दु (अनुस्वार चिह्न) की छूट दे दी गई है; जैसे- नहीं, में, मैं ।

हिंदी वर्तनी में संस्कृत के तत्सम शब्दों संबंधी नियम-हिंदी वर्तनी में संस्कृत के तत्सम शब्दों के संबंध में निम्नलिखित नियम हैं-

1. संस्कृत के तत्सम शब्दों को हिंदी में ज्यों का त्यों ग्रहण किया जाना चाहिए, परन्तु जिन शब्दों में हिंदी में आकर हल चिह्न लुप्त हो चुका है, उनमें उसको फिर से लगाने की कोशिश न की जाए। जैसे-महान, विद्वान, श्रीमान् आदि के न में चिह्न न् नहीं लगाया जाए। हल्

2. संस्कृतमूलक तत्सम शब्दों की वर्तनी को ज्यों का त्यों ग्रहण किया जाए। ब्रह्मा को ब्रम्हा, चिह्न को चिन्ह, उ॒ण को उरिण में बदलना उचित नहीं। इसी प्रकार ग्रहीत दृष्टव्य, प्रदर्शिनी, अत्याधिक, अनाधिकार आदि अशुद्ध प्रयोग ग्राह्य नहीं हैं। इनके स्थान पर क्रमशः गृहीत, द्रष्टव्य, प्रदर्शनी, अत्यधिक, अनाधिकार ही लिखना चाहिए।

हिंदी में हिंदीतर (विदेशी) ध्वनियों के लिए वर्तनी संबंधी नियम-

अरबी-फारसी या अंग्रेजी मूलक वे शब्द जो हिंदी के अंग बने चुके हैं और उनकी विदेशी ध्वनियों का हिंदी रूपांतर हो चुका है, हिंदी रूप में ही स्वीकार किए जा सकते हैं; जैसे-कलम, किला, दाग आदि। पर जहाँ विदेशी शुद्ध विदेशी रूप में प्रयोग अभीष्ट हो अथवा उच्चारणगत भेद बताना आवश्यक हो वहाँ उनके हिंदी में प्रचलित रूपों में यथास्थान नुक्ते लगाए जाएँ, जैसे-खाना, ख़ाना, राज, राज़, फन, फन आदि। हिंदी में कुछ शब्द ऐसे हैं, जिनके दो-दो रूप बराबर चल रहे हैं। विद्वत्समाज में दोनों रूपों की एक-सी मान्यता है; जैसे- गरदन / गर्दन, गरमी /गर्मी, बरफ/ बर्फ, बिलकुल / बिल्कुल, सरदी / सर्दी, कुरसी/कुर्सी, भरती/ भर्ती, फुरसत /पुफर्सत, बरदाश्त/बर्दाश्त, वापिस/वापस, आखीर / आखिर, बरतन / बर्तन, दोबारा / दुबारा, दूकान / दुकान आदि।

हिंदी वर्तनी के कुछ अन्य नियम-

हिन्दी वर्तनी के कुछ अन्य नियम निम्नलिखित हैं- (i) हिंदी में कभी-कभी ऐ व औ ध्वनियाँ अय् आय्, व, अव, आव की ध्वनियाँ निकालने लगती हैं. परन्तु वहाँ ऐ व औ का प्रयोग ही किया जाना चाहिए।

जैसे – गवैया (V) गवय्या (x), कौवा (V) कव्वा (x) । (ii) पूर्वकालिक प्रत्यय कर क्रिया से मिलाकर लिखा जाना चाहिए। जैसे-मिलाकर, खाकर, पीकर, पहनकर आदि ।

3. हिंदी वर्तनी में शिरोरेखा का प्रयोग जारी रहना चाहिए।

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