परीक्षा कहानी का सारांश PDF : Pariksha Kahani Ka Saransh

परीक्षा कहानी का सारांश

मुंशी प्रेमचंद के मतानुसार साहित्य का कार्य केवल मनोरंजन करना ही नहीं, बल्कि किसी आदर्श लक्ष्य की स्थापना तथा जीवन-मूल्यों की प्रतिष्ठा करना भी है। ‘परीक्षा’ कहानी इन्हीं जीवन-मूल्यों की प्रतिस्थापना करती है। प्रस्तुत कहानी शासन संबंधी सामान्य जीवन-मूल्यादर्शों की परख करती एक सामाजिक-राजनीतिक कहानी है। कहानी का सार इस प्रकार है :

देवगढ़ के दीवान सरदार सुजान सिंह अब वृद्ध हो गए थे। उन्होंने दीवान पद से हटने का निर्णय ले लिया था। राजा ने उनके इस निर्णय को तो स्वीकार कर लिया, परंतु नए दीवान के चयन का उत्तरदायित्व भी उन्हीं को सौंप दिया। सरदार सुजान सिंह ने विभिन्न पत्रों के माध्यम से नए दीवान की नियुक्ति हेतु विज्ञापन दिए। उन्होंने इस विशेष पद के लिए अनूठी शर्तें रखी।

इन अनोखी शर्तों को सुनकर विभिन्न प्रांतों से उम्मीदवार अपना-अपना भाग्य आजमाने देवगढ़ में एकत्र हुए। परीक्षा के लिए एक महीने का समय दिया गया। सभी उम्मीदवारों ने अपने व्यक्तित्व का अच्छे-से-अच्छा प्रदर्शन करने का प्रयास किया। सभी इस अवधि में कोई ऐसा कृत्य नहीं करना चाहते थे जो उनकी दावेदारी को कमजोर करे। वे सभी सतर्क एवं सचेत थे।

एक दिन युवा उम्मीदवारों के मन हॉकी खेलने की उत्सुकता हुई। शाम तक सभी उत्साहपूर्वक खेले। हार-जीत का कोई निर्णय नहीं हुआ। अधिक देर तक खेलने से उनके शरीर थककर टूट चुके थे। वे वहीं लेटकर सुस्ताने लगे और फिर अपने स्थानों की ओर लौटने लगे। रास्ते में एक नाला था। एक बूढ़ा किसान अनाज से भरी गाड़ी लेकर नाले की ओर आ रहा था। नाले में कीचड़ अत्यधिक थी। वस्तुतः गाड़ी नाले में फंस गयी। किसान और बैलों ने खूब हाथ-पैर मारे, परंतु गाड़ी बाहर नहीं निकली।

हॉकी खेलकर लौट रहे युवाओं का दल वहीं से गुजर रहा था। किसान ने प्रत्येक को सहायता के लिए पुकारा परंतु किसी ने उसकी सहायता नहीं की। जन्त में वहाँ से एक सहृदय युवक लंगड़ाते हुए गुजरा। खेलते समय उसकी टाँग पर चोट लगी थी। यह किसान की मदद के लिए रुका। उसने गाड़ी के पहियों का जोर लगाकर बाहर धकेला, बैलों ने भी कुछ जोर लगाया। अन्ततः गाड़ी नाले से बाहर निकल गयी। किसान ने उसका धन्यवाद किया और आशीर्वाद देता हुआ बैलों को हाँकने लगा। युवक अपने स्थान की ओर लौट गया था।

चुनाव का दिन आ गया। उम्मीदवार प्रातःकाल से राजा के दरबार में एकत्र हो गए। राजा के साथ रियासत के अमोर, गरीब एवं कर्मचारी सभी शामिल हुए। सरदार सुजान सिंह खड़े हो गए और बोले, “महाशयो! मैंने आप लोगों को कष्ट दिया है, उसके लिए मुझे क्षमा कीजिए। इस पद के लिए ऐसे पुरुष की आवश्यकता थी जिसके हृदय में दया हो और साथ-साथ आत्मबल। हृदय वह जो उदार हो, आत्मबल यह जो आपत्ति का वीरता के साथ सामना करे और इस रियासत के भाग्य से हमें ऐसा पुरुष मिल गया है। रियासत को पंडित जानकीनाय-सा दीवान पाने पर बधाई देता हूँ।” चयन का कारण उन्होंने उम्मीदवारों को गाड़ी वाली पटना को याद दिलवाया। पंडित जानकीनाथ ही वह गुणी युवक था, जिसने गरीब किसान वेशधारी सुजान सिंह को अपने कर्तव्य पालन, दया और उदारता जैसे गुणों से मोह लिया था। यहीं पर कहानी समाप्त हो जाती हैं।

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